Moong Dal का Price और कितना Per Kg / प्रति क्विंटल चल रहा है 2024

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अगर हम बात करें बाजारू भाव के बारे में तो इस समय न्यूनतम Moong Dal का Price 10000 रु प्रति क्विंटल और उच्चतम मंडी मूल्य का Price 10800 रु प्रति क्विंटल चल रहा है और आगे ये आप जानेगें किस जगह और कहाँ पर कितना Price चल रहा है ।

जगह का नाम रुपए प्रति किलो / प्रति क्विंटल
जसवंतनगर में6750 रु प्रति क्विंटल
जबलपुर में7045 रु प्रति क्विंटल
इटावा में6625 रु प्रति क्विंटल
भर्थना में6710 रु प्रति क्विंटल
औरया में6820 रु प्रति क्विंटल
गुलबबाग में9050 रु प्रति क्विंटल
लखनऊ में8800 रु प्रति क्विंटल
फारबिसगंज में9100 रु प्रति क्विंटल
खगड़िया में9100 रु प्रति क्विंटल
रानीगंज में9255 रु प्रति क्विंटल
कानपुर में6650 रु प्रति क्विंटल
जगदीपुर में9100 रु प्रति क्विंटल
सुपौल में9030 रु प्रति क्विंटल
छपरा में9400 रु प्रति क्विंटल और 94 रु प्रति किलो
डोभी में9060 रु प्रति क्विंटल
रसड़ा में8750 रु प्रति क्विंटल
नूर सराय में9170 रु प्रति क्विंटल
जौनपुर में8850 रु प्रति क्विंटल
आजमगढ़ में8810 रु प्रति क्विंटल
मुंबई में9300 रु से 13000 रु प्रति क्विंटल
पच्छिम बंगाल में10800 रु प्रति क्विंटल
मालदा में11000 रु प्रति क्विंटल
दार्जिलिंग के सिलीगुड़ी में10200 रु प्रति क्विंटल
सहारनपुर में9850 रु प्रति क्विंटल
मुजफ्फरनगर में9790 रु प्रति क्विंटल
बहराइच में10000 रु प्रति क्विंटल
गाजियाबाद में9750 रु प्रति क्विंटल
पच्छिम बंगाल के अंग्रेजी बाजार में11000 रु प्रति क्विंटल
सिलीगुड़ी में10200 रु प्रति क्विंटल
बेंगलोर में12000 रु प्रति क्विंटल
कर्नाटक के शिमोगा में10900 रु प्रति क्विंटल
पच्छिम बंगाल के आसनसोल में10800 रु प्रति क्विंटल
बर्दवान में10800 रु प्रति क्विंटल
बुलंदशर में7700 रु प्रति क्विंटल
बुलंदशर के अनूप शहर में7700 रु प्रति क्विंटल
कानपुर के चौबेपुर8800 रु प्रति क्विंटल
सहारनपुर में8500 रु प्रति क्विंटल
अलीगढ़ में7900 रु प्रति क्विंटल
मेरठ में9650 रु प्रति क्विंटल
वाराणसी में9765 रु प्रति क्विंटल
सुल्तानपुर में9780 रु प्रति क्विंटल
फारूखाबाद में9525 रु प्रति क्विंटल

मुंबई के कुछ क्षेत्र में Moong Dal का Price जानें

आप यहाँ अपने मुंबई के कुछ क्षेत्रों के बारे में Moong का Price जान सकते हैं ।

जगह का नाम अधिकतम रु प्रति क्विंटल
शेरगाँव में7150 रु प्रति क्विंटल
मालेगांव में7200 रु प्रति क्विंटल
लातूर में6800 रु प्रति क्विंटल
देवाला में8050 रु प्रति क्विंटल
सांगली में8130 रु प्रति क्विंटल
जालना में7000 रु प्रति क्विंटल
मुंबई में9300 रु प्रति क्विंटल
अमरावती में6680 रु प्रति क्विंटल
वाशिम में5600 रु प्रति क्विंटल
मलकपुर में6600 रु प्रति क्विंटल
अकोला में6800 रु प्रति क्विंटल
खामगाँव में7450 रु प्रति क्विंटल
मेंहरकर में7050 रु प्रति क्विंटल
करंजा में7050 रु प्रति क्विंटल

1 Kg Moong Dal Price क्या है

अनलाइन स्टोर पर

फ्लिपकार्ट 1 Kg Price241 रु
जिओ मार्ट250 रु
ऐमज़ान पर180 रु
डी मार्ट164 रु

यहाँ चावल का भाव जानें

Moong Dal की किस्मों को समझना

1. मूंग दाल की विभिन्न किस्मों का अवलोकन बहुत जरूरी है क्योंकि इससे आपको अपनी खेती के बारे में पता चलेगा की कौन सी बीज आपके खेतों के लिए उपयोगी है।

2. खेती के लिए सही किस्म का चयन करना कुछ निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं जो आपको मदद करते हैं

पंजाब सुपर-मूंग: यह मूंग उच्च उत्पादकता और अच्छी गुणवत्ता की वजह से लोकप्रिय है। इसमें छोटे पौधे होते हैं और अच्छे तौर से पोषित होने के कारण उच्च उपज की संभावना है।

पंजाब बहार: यह Moong Dal उच्च गुणवत्ता वाली दाल देती है और विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में उपज करते है। इसके पौधे ऊँचे होते हैं और व्यापक रूप से सड़कों पर उपयुक्त होते हैं।

गोल्डन मूंग: यह मूंग अच्छे रूप से पौधों की ऊँचाई और उच्च उपज के लिए जानी जाती है। इसमें विशेष रूप से बढ़ोतरी गुणवत्ता और स्वाद से भरपूर है।

मनी वारी डाल: यह मूंग तेजी से उगने वाले पौधों के लिए प्रसिद्ध है और उच्च उपज प्रदान करती है। इसमें बेहतरीन गुणवत्ता और अच्छा दर होता है।

प्रत्येक क्षेत्र और आपकी विशेष आवश्यकताओं के आधार पर विभिन्न किस्में होती हैं, इसलिए स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेना उपयुक्त रहेगा ।

Moong Dal के लिए जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएँ

1. मूंग दाल के लिए आदर्श जलवायु परिस्थितियाँ।

तापमान: मूंग दाल के पौधों के लिए उच्चतम और न्यूनतम तापमान की आवश्यकता होती है। इसकी उच्चतम उपज के लिए 20-30 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त है।

बर्फबारी और बर्फबारी की अभाव: मूंग दाल के पौधों के लिए बर्फबारी और बर्फबारी की कमी होना चाहिए। इन अनुकूल परिस्थितियों में पौधों का अच्छा विकास होता है।

वर्षा: मूंग दाल की खेती के लिए समान्यत: 600-800 मिमी वर्षा की आवश्यकता होती है। यह सही तापमान और पोषण सहित सही परिस्थितियों में पौधों की उच्चतम उपज को सुनिश्चित करने में मदद करता है।

उच्च आर्द्रता: मूंग दाल पौधों को अधिकतम आर्द्रता की आवश्यकता होती है, खासकर बूंदें बरसती हैं। इससे पौधों को अच्छे से पोषित किया जाता है और उच्चतम उपज होती है।

सही मृदा और पानी की सुप्लाई: मूंग दाल के पौधों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली मृदा और सुरक्षित पानी की आपूर्ति की आवश्यकता होती है। इससे पौधों को सही पोषण मिलता है और उपज में वृद्धि होती है।

2.मिट्टी की तैयारी और उर्वरता संबंधी विचार ।

मूंग दाल की खेती के लिए मिट्टी की तैयारी और उर्वरता का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां दी गई हैं कुछ महत्वपूर्ण विचार:

पीएच स्तर: मूंग दाल के पौधों के लिए सही पीएच स्तर का महत्वपूर्ण योगदान होता है। सामान्यत: 6.0 से 7.5 के बीच का पीएच स्तर उपयुक्त होता है।

मूल्यवान पोषण: मिट्टी को सही पोषण से भरना आवश्यक है। यह नाइट्रोजन, फॉस्फेट, और पोटैशियम को सही मात्रा में प्रदान करना चाहिए।

ऊर्जा संरति: मिट्टी को अच्छी ऊर्जा संरति प्रदान करने के लिए अच्छी द्रवता और सुरक्षितता की आवश्यकता है। इससे पौधों को सही मात्रा में पानी मिलता है और उनमें पोषण का सही संघटन बना रहता है।

उर्वरता संबंधी

आपको इसकी उर्वरता पर विशेष ध्यान देना चाहिए जो निम्नलिखित है

सही पानी सप्लाई: मूंग दाल के पौधों को सही मात्रा में पानी प्रदान करना महत्वपूर्ण है। अधिक पानी से उबालने से पौधों को स्थिति खराब हो सकती है, जबकि कम पानी से विकास में कमी आ सकती है।

जल सहित स्थान: मूंग दाल के पौधों को जल सहित स्थान पसंद होता है। इसमें प्रशासनिक सुरक्षा के साथ-साथ पौधों के सही विकास के लिए अच्छा होता है।

कच्ची जल सूची: उच्च उर्वरता वाली कच्ची जल सूची का अनुसरण करना चाहिए ताकि पौधों को अच्छी तरह से सिंचाई हो सके।

Moong Dal की रोपण प्रक्रिया

1. बीज का चयन एवं उपचार ।

सही बीज का चयन

  • उच्च गुणवत्ता और पौष्टिकता से भरपूर बीज का चयन करें।
  • स्थानीय कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेकर, आपके क्षेत्र के अनुकूल बीज का चयन करें।
  • रोग प्रतिरोधी बीजों का प्रयोग करें ताकि उन्हें प्रतिरोध शक्ति हो।

बीज की पूर्व-प्रक्रिया

  • बीजों को पूर्व-प्रक्रिया से गुजरने से पौधों का उच्च उत्पादन होता है।
  • बीजों को उबालने, बीजों को बुआई के लिए तैयार करने और बीजों की उनकी अच्छी देखभाल की जरूरत होती है।

बीज की उच्चतम गुणवत्ता के लिए

  • बीजों को पहले से ही अच्छे तरह से उपचारित करें, जिससे कि उनमें कीटाणुओं का सफाया हो।
  • अगर बीजों में किसी प्रकार का रोग है, तो उपचार के लिए उपयुक्त कीटनाशकों का चयन करें।

बीजों की उच्चतम प्राकृतिक उर्वरता के लिए

  • बीजों को पूर्व-प्रक्रिया में जल से भिगोकर रखने से उनमें ऊर्जा भरा रहता है।
  • बीजों को उच्चतम ऊर्जा स्तर के साथ जमीन में बोने जाने पर उपचारित करें।

बीजों की बुआई का सही समय

  • स्थान के आधार पर बीजों की बुआई का सही समय चुनें।
  • सामान्यत: मूंग दाल की बुआई मार्च से अप्रैल के महीनों में की जाती है।

सही बीज का चयन और उपचार से आप मूंग दाल की खेती में उच्च उपज और पौष्टिकता को सुनिश्चित करते हैं।

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2. इष्टतम विकास के लिए बुआई तकनीक ।

बीज का सही चयन

  • सही बुआई के लिए सही बीज का चयन करें। उच्च गुणवत्ता और पौष्टिकता से भरपूर बीजों का चयन करना महत्वपूर्ण है।

बुआई का सही समय

  • बीजों को उच्च उपज और विकास के लिए सही समय पर बोना जाना चाहिए।
  • स्थान के आधार पर बुआई का सही समय चुनें, जो आमतौर पर मार्च से अप्रैल के बीच होता है।

बुआई की गहराई

  • बुआई की गहराई को सही रूप से बनाए रखें। गहराई की सही मात्रा में होना चाहिए, न ज्यादा गहरा और न ही कम।

पंक्ति और अंतर

  • पंक्तियों के बीच उच्चतम दूरी और बीजों के बीच सही अंतर को बनाए रखें। इससे पौधों को अधिक स्थान मिलता है और विकास होता है।

पोषण और जल सहित सही देखभाल

  • बुआई के बाद सही पोषण और सही मात्रा में पानी की देखभाल करें।
  • बुआई के बाद पौधों को सही खाद और पोषण से प्रदान करें।

रोग और कीट प्रबंधन

  • बुआई के समय और बाद में सही कीटनाशकों का उपयोग करें।
  • पौधों को सुरक्षित रखने के लिए रोग प्रबंधन के उपायों का अनुसरण करें।

सही तकनीकी उपाय

  • उच्च विकास के लिए सही तकनीकी उपायों का अनुसरण करें, जैसे कि उच्चतम उपज प्रदान करने के लिए खेतों की छायांकन तकनीक।

सही बुआई तकनीक से बीजों को उच्च उपज और विकास में मदद मिलती है, जिससे मूंग दाल की खेती में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

Moong Dal सिंचाई प्रथाएँ

1. मूंग दाल के लिए पानी देने का शेड्यूल ।

Moong Dal को सही प्रकार से पानी प्रदान करने के लिए एक उचित शेड्यूल बनाना महत्वपूर्ण है। यहां एक सामान्य पानी देने का शेड्यूल दिया गया है:

बुआई के बाद

  • पहले 7-10 दिनों तक पौधों को पूर्व-प्रक्रिया के बाद प्रतिदिन पानी दें, ताकि बीज अच्छे से उबल सके और पौधे मजबूती से उगें।

पूर्व-फूलोत्सर प्रणाली

  • बूंदें पौधों की ऊपरी सतह पर नहीं, बल्कि मिट्टी के निकटतम हिस्से पर जमा होनी चाहिए ताकि पानी सीधे मूंग की जड़ों तक पहुँचे।

फूलोत्सर से फसल के अंत तक

  • फूलोत्सर से फसल के अंत तक, प्रति हफ्ते दो बार से तीन बार पानी देना उचित होता है।
  • बूंदों की मात्रा को अनुसार उचित गहराई तक जमा करना चाहिए।

फसल के आधार पर अधिक या कम पानी

  • फसल के विकास के दौरान, बीजों की उच्चतम उपज और गुणवत्ता के लिए पानी की मात्रा को बढ़ाना या घटाना आवश्यक होता है।
  • मौसम और जलवायु शर्तों के आधार पर पानी देने की मात्रा में बदलाव करें।

बारिश या शान्तिदिनों में कम पानी

  • यदि बारिश हो रही है या शान्तिदिन हैं, तो पौधों को कम पानी देना चाहिए, ताकि जल स्थिति से बचा जा सके।

फूलोत्सर की संरचना की निगरानी

  • फूलोत्सर की संरचना की निगरानी करें ताकि जल उचित रूप से छिद्रित हो सके और पौधों तक पहुँच सके।

इस तरह का पानी देने का शेड्यूल बनाकर, आप मूंग दाल की उच्चतम उपज और सही विकास को सुनिश्चित करते हैं।

2. उचित सिंचाई तकनीकों का महत्व ।

  • उचित सिंचाई तकनीकें बोए गए बीजों को सही मात्रा में पानी प्रदान करने के लिए होती हैं, जिससे पौधों को ऊर्वरता बनी रहती है और उन्हें सही पोषण मिलता है।

फसल की सही उपज:

  • सही सिंचाई तकनीकें फसल को आवश्यक पानी प्रदान करके उच्च उपज की सुनिश्चित करती हैं, जिससे किसानों को अधिक मुनाफा होता है।

जल संरक्षण:

  • उचित सिंचाई तकनीकें जल संरक्षण में मदद करती हैं, क्योंकि यह बर्बाद होने वाले पानी की मात्रा को कम करती है और पानी का उपयोग सही तरीके से होता है।

फसल के सही विकास की सुनिश्चितता

  • उचित सिंचाई तकनीकें पौधों को नियमित और सही मात्रा में पानी प्रदान करके उनके सही विकास की सुनिश्चितता करती हैं, जिससे फसल में समान रूप से विकास होता है।

बीमा का सही उपयोग

  • सही सिंचाई तकनीकें किसानों को बीमा के लाभ का उपयोग करने में मदद कर सकती हैं, क्योंकि सही सिंचाई से फसल का समर्थन करने का खतरा कम होता है।

कुशल जल संचार

  • उचित सिंचाई तकनीकें अच्छे जल संचार की सुनिश्चितता में मदद करती हैं, जिससे फसलों को सही समय पर सही मात्रा में पानी मिलता है।

जलवायु परिवर्तन के साथ समारूपता

  • उचित सिंचाई तकनीकें जलवायु परिवर्तन के साथ समारूपता बनाए रखने में मदद कर सकती हैं, क्योंकि वे अनुकूल जलवायु स्थितियों के अनुसार बदलती हैं।

Moong Dal के लिए पोषक तत्व प्रबंधन

1. Moong Dal के लिए आवश्यक पोषक तत्व ।

नाइट्रोजन (N)

  • मूंग दाल के पौधों के विकास और उपज में नाइट्रोजन का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
  • नाइट्रोजन पौधों के पत्तों, डालों, और बीजों की गठन में सहायक होता है।

फॉस्फोरस (P)

  • Moong Dal के पौधों के लिए फॉस्फोरस तत्व का उपयोग रूढ़िवादी बनावट में होता है।
  • इससे पौधों का सही विकास, फूलों का उत्पन्न होना, और बीज की गठन में मदद होती है।

पोटैशियम (K)

  • पोटैशियम मूंग दाल के पौधों की ऊर्जा संबंधित प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह पौधों को अच्छे से फूलने, बीजों की गठन में सहायक होता है।

कैल्शियम (Ca)

  • कैल्शियम मूंग दाल के पौधों की स्थिरता और सही संरचना के लिए आवश्यक है।
  • इससे पौधों की ऊबड़-चिढ़ रोकी जाती है और बीजों की गठन में मदद होती है।

मैग्नीशियम (Mg)

  • मैग्नीशियम पौधों के पत्तों की हरियाली और फोटोसिंथेसिस के लिए महत्वपूर्ण है।
  • इससे पौधों का सही विकास होता है और उन्हें ऊर्जा मिलती है।

सल्फर (S)

  • सल्फर मूंग दाल में पौधों की प्रोटीन बनाने में मदद करता है।
  • यह पौधों के विकास के लिए आवश्यक है और फूलों और बीजों की गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आयरन (Fe)

  • आयरन मूंग दाल के पौधों के लिए क्लोरोफिल उत्पन्न करने में मदद करता है, जिससे पौधों की हरियाली बनी रहती है।

मूंग दाल के लिए ये पोषक तत्व पौधों के सही विकास और उच्चतम उपज की सुनिश्चितता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

2. निषेचन कार्यक्रम और तरीके ।

पौधों की आवश्यकता के आधार पर निषेचन का निर्धारण

  • पौधों की आवश्यकता के आधार पर एक निषेचन कार्यक्रम तैयार करें।
  • पौधों के विकास के लिए विशेष चरिकीयों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखें।

निषेचन की मात्रा और सिक्का

  • पौधों की आयु, जल संचार, और मिट्टी की आवश्यकताओं के आधार पर निषेचन की मात्रा और सिक्का निर्धारित करें।
  • एक अच्छे सिक्के के साथ सही मात्रा में पानी प्रदान करना महत्वपूर्ण है।

सुपरवाइजन और निगरानी

  • निषेचन के दौरान सुपरवाइजन और निगरानी बनाए रखें।
  • पानी के प्रवाह की सुरक्षा और पौधों की स्थिति का निरीक्षण नियमित रूप से करें।

निषेचन का सही समय

  • पौधों के विकास के लिए सही समय पर निषेचन करें।
  • बारिश या उच्चतम तापमान के दौरान निषेचन से बचें, क्योंकि यह पानी की व्यवस्था में असमर्थ करता है।

जल संरचना की सुरक्षा

  • निषेचन के लिए उपयुक्त साधनों का उपयोग करें ताकि जल संरचना को क्षति ना हो।
  • सभी संरचनाओं को सही रूप से संरक्षित रखें और उनकी निगरानी करें।

पोषण और प्रोटेक्शन

  • निषेचन में पौधों को उच्चतम पोषण प्रदान करें।
  • पानी की सही मात्रा में प्रदान करने के साथ ही पौधों को सुरक्षित रखने के लिए प्रोटेक्शन उपायों का भी ध्यान रखें।

जल संचार की उचितता

  • जल संचार को बनाए रखने के लिए सही समय पर निषेचन करें ताकि पौधों को सही मात्रा में पानी मिलता रहे।
  • अधिक निषेचन से जल संचार की व्यवस्था में असमर्थता होती है।

निषेचन कार्यक्रम और तरीकों का उचित प्रबंधन करना महत्वपूर्ण है ताकि पौधों को सही समय पर सही मात्रा में जल मिले और उनका सही विकास हो सके।

Moong Dal के लिए कीट एवं रोग नियंत्रण

1. Moong Dal को प्रभावित करने वाले सामान्य कीट ।

Moong Dal की अफिड

  • पहचान: यह सुकुमारी रंग की छोटी कीट होती है जो पौधों के नीचे बैठकर रहती है।
  • प्रभाव: इसकी बुआई वृद्धि को रोक सकती है और पौधों को ठीक करती है।

Moong Dal की थ्रिप्स

  • पहचान: थ्रिप्स छोटी कीटें होती हैं जो पत्तियों पर छोटे से छोटे सफेद या पीले दानेदार दाग छोड़ती हैं।
  • प्रभाव: इन्हें जाड़े के मौसम में बढ़ता है और इनका प्रकोप पौधों के लिए हानिकारक होता है।

Moong Dal का कीट – कीटनाशकों के खिलाफ जड़ा जोर

  • पहचान: अलग-अलग प्रकार के कीटनाशक जैसे कि थ्रिप्स, अफिड्स, और भूखे कीटें।
  • प्रभाव: इन कीटनाशकों के प्रकोप से मूंग दाल की उपज पर प्रभाव पड़ता है और पौधों को हानि पहुंचाता है।

Moong Dal बोर

  • पहचान: इसके अगले भाग में छेद बना कर खाने की आदत होती है, जो पौधों की स्थिति को बिगाड़ती है।
  • प्रभाव: पौधों की ऊर्जा को चुरा लेने के कारण पौधों का समृद्धि बाधित होता है।

Moong Dal की पोड फ्लाई

  • पहचान: यह कीट रेगुलर फ्लाई की तरह दिखती है लेकिन मूंग दाल के पौधों को प्रभावित करती है।
  • प्रभाव: इसके अत्यधिक प्रकोप से पौधों की स्थिति में कमी हो सकती है और उपज पर असर डालती है।

Moong Dal की माइनर गैलर बोरर

  • पहचान: पौधों की पत्तियों के बीच गैलर बना कर बैठती है और पौधों की ऊर्जा

2. जैविक और रासायनिक नियंत्रण उपाय ।

जैविक नियंत्रण

  • नीम का तेल: नीम का तेल मूंग दाल की फसल को कीटनाशकीय आक्रमण से बचाने में मदद करता है। इसे प्रतिसप्ताह पौधों पर छिड़कने से कीटों का प्रभाव कम होता है।
  • ब्रह्मसार श्रेणी: जैविक उपाय में ब्रह्मसार श्रेणी का प्रयोग किया जा सकता है, जो कीटनाशकीय पथों को ब्लॉक करने में मदद करती है।
  • नीम की खाद: नीम की खाद का नियमित उपयोग करना मूंग दाल को सुरक्षित रखने में सहायक होता है, क्योंकि यह कीटनाशकीय पथों को रोकता है।

रासायनिक नियंत्रण

  • प्य्रेथ्रॉइड: रासायनिक उपाय में प्य्रेथ्रॉइड जैसे कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है, जो विभिन्न कीटों को नष्ट करने में मदद करते हैं।
  • नीम आयल: नीम आयल का अधिक प्रयोग करना रासायनिक नियंत्रण का एक उपाय होता है, लेकिन इसे सावधानीपूर्वक और उचित रूप से इस्तेमाल करना चाहिए।
  • फिप्रोनिल: फिप्रोनिल जैसे रासायनिक उपायों का भी प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसे सही अनुप्रयोग दिशा में ही इस्तेमाल करना चाहिए।

जल संरक्षण

  • जितना हो सके, जल संरक्षण का ध्यान रखें, क्योंकि रासायनिक नियंत्रण उपायों में जल की बड़ी मात्रा उपयोग होती है और यह प्रदूषण का कारण बनती है।

Moong Dal बचाव के लिए खरपतवार प्रबंधन

1. मूंग दाल की खेती पर खरपतवारों का प्रभाव ।

खेती कीटों का प्रभाव

  • Moong Dal की अफिड: यह छोटी सी कीट होती है जो पौधों की ऊर्जा को चुरा लेती है और पौधों के सही विकास को रोक सकती है।
  • थ्रिप्स: थ्रिप्स भी मूंग की डाल को प्रभावित कर सकती हैं, उनके चुस्तकरण से पत्तियों पर दाग बनते हैं जो फसल की दृष्टि से उठाता है।

फंगस और बैक्टीरियल रोग

  • फुसारियम विरुद्ध रोग: फुसारियम विषाणु के कारण होने वाला रोग मूंग दाल के पौधों को लकवा मार देता है, जिससे पौधों की स्थिति में कमी आती है।
  • बैक्टीरियल ब्लाइट: यह ब्लाइट रोग पौधों को सुजन, कीटिलाई और कीटक लगने के कारण प्रभावित करता है।

अनुकूल जलवायु और तापमान का प्रभाव

  • उच्च तापमान: अधिक तापमान के दौरान मूंग दाल की खेती पर असर होता है, क्योंकि यह पौधों को सुखाता है और उनका सही विकास बाधित करता है।
  • अधिक बर्फबारी: ठंडी हवाओं और बर्फबारी के कारण भी मूंग दाल की खेती पर प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि यह पौधों को ठंडा करके उनके विकास को रोकता है।

जलवायु बदलाव का प्रभाव

  • बारिश की कमी: अधिक बारिश या कम बारिश के कारण मूंग दाल की खेती पर असर होता है, क्योंकि यह पौधों को उचित मात्रा में पानी प्रदान करने में मुश्किलें डालता है।

2.प्रभावी खरपतवार नियंत्रण रणनीतियाँ ।

जैविक नियंत्रण

  • जैविक खेती: जैविक खेती में उचित उर्वरकों का प्रयोग करने से पौधों की प्रतिरक्षा बढ़ती है, जिससे खरपतवारों का प्रभाव कम होता है।
  • पेड़ोलॉजिकल कंट्रोल: प्राकृतिक शत्रुओं, जैसे कि लैडीबर्ड्स, प्रेडेटर्स का सही रूप से प्रबंधन करके खरपतवारों को नियंत्रित किया जाता है।

रोग प्रबंधन

  • समुद्री रोग संरक्षण: उपयुक्त फंगिसाइडों का इस्तेमाल करके फुसारियम जैसे फंगल रोगों से बचाव किया जाता है।
  • हाइब्रिड वारायटीज: विकसित हाइब्रिड वारायटीज का चयन करके जिनमें प्रतिरक्षा शक्ति हो, रोग प्रतिरक्षा में सुधार किया जाता है।

जल संरक्षण और योजनाबद्ध खेती

  • कप्तानी प्रणाली: जल संरक्षण के लिए कप्तानी प्रणाली का अनुसरण करना, जिसमें पानी की बचत के लिए उपाय शामिल होते हैं, प्रभावी होता है।
  • ड्रिप आयरीगेशन: ड्रिप आयरीगेशन सिस्टम का इस्तेमाल करना जल की बचत में मदद कर सकता है, जिससे पौधों को सही मात्रा में पानी प्रदान होता है।

रासायनिक नियंत्रण

  • इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (IPM): IPM रणनीति के अंतर्गत रासायनिक और जैविक खेती तकनीकों का संयोजन करके खरपतवारों का प्रबंधन किया जाता है।

Moong Dal की फसल चक्रण रणनीतियाँ

1. Moong Dal की खेती में फसल चक्र के लाभ।

पोषण संरक्षण

  • नाइट्रोजन की वृद्धि: मूंग दाल को बुआई के बाद, समीप स्थित फसलों के नाइट्रोजन स्तर को बनाए रखने के लिए पौष्टिक बुआई के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • पुनर्निर्माण: मूंग दाल को समुच्चित फसल चक्र में शामिल करने से, मिट्टी को पौष्टिकता की दृष्टि से फायदा होता है, जिससे आनेवाली पौष्टिकता को सुरक्षित किया जाता है।

रोग और कीट प्रबंधन

  • फसल चक्र से कीट प्रबंधन: मूंग दाल को समुच्चित फसल चक्र में शामिल करने से फसल पर कीटनाशकों का प्रभाव कम हो सकता है, क्योंकि इससे कीटनाशकों की अधिकता नहीं होती है।
  • पौधों की स्वास्थ्य: फसल चक्र के माध्यम से सही समय पर बुआई करने से पौधों की स्वास्थ्य सुरक्षित रहती है और यह रोगों से प्रभावित नहीं होगी।

पोषण संभाल

  • पोषण की संरचना: मूंग दाल को फसल चक्र में शामिल करने से पौधों को सही समय पर सही मात्रा में पोषण प्रदान किया जाता है, जिससे फसल की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
  • मिट्टी की स्वास्थ्य: एक सुचेतन फसल चक्र के बारे में सोचा जा सकता है जो मिट्टी की स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए योगदान करता है, जिससे मूंग दाल की खेती की अच्छी प्रदर्शन क्षमता होती है।

जल संरक्षण

  • बुआई के सही समय: सही समय पर बुआई करने से फसल को सही मात्रा में पानी मिलता है, जिससे जल संरक्षण होता है और पानी की बचत होती है।
  • ड्रिप आयरीगेशन: जल संरक्षण के लिए ड्रिप आयरीगेशन सिस्टम का उपयोग करना फायदेमंद होता है, क्योंकि इससे पानी की सही मात्रा में पौधों को प्रदान होती है।

मूंग दाल की खेती में फसल चक्र का उपयोग करने से उत्पादकता में सुधार होता है और खेती की सुरक्षित और साइक्लिक प्रबंधन में मदद करता है।

2. चक्रण के लिए आदर्श फसलें ।

गेहूं (Wheat)

  • आदर्श चक्रण स्थिति: गेहूं एक आदर्श फसल है जो चक्रण के लिए सही होती है। इसमें पौष्टिकता भरपूर होती है और इसकी बुआई चक्रण में अच्छे पोषण को सुनिश्चित करती है।
  • पौधों की स्थिति: गेहूं का विकास चक्रण के साथ मेल खाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि फसल उत्तम स्वास्थ्य में है और उच्च उत्पादकता देती है।

मूंग दाल (Green Gram)

  • आदर्श चक्रण स्थिति: मूंग दाल भी एक अच्छी चक्रण फसल है, क्योंकि इसमें अच्छी तरह से नियंत्रित किया जाता है और इससे पौष्टिकता मिलती है।
  • पौधों की स्थिति: मूंग दाल की छोटी पौधेयाँ चक्रण की स्थिति के साथ समर्थ होती हैं, जिससे इसमें उच्च उत्पादकता दर्ज की जाती है।

सरसों (Mustard)

  • आदर्श चक्रण स्थिति: सरसों भी एक आदर्श चक्रण फसल है जो खेती में अच्छे से समाहित होती है। इसकी बुआई चक्रण के तात्पर्य से होने पर उच्च प्रदर्शन मिलता है।
  • पौधों की स्थिति: सरसों के पौधे चक्रण के साथ समर्थ होते हैं और इससे फसल को सही समय पर सही मात्रा में पोषण प्रदान होता है।

इन आदर्श फसलों को चक्रण के साथ मिलाकर खेती करने से उत्तम फल प्राप्त होता है और खेतीकरों को सुरक्षित और स्थायी उत्पादकता का अनुभव होता है।

Moong Dal का फूल आना और फली विकास

1.पुष्पन अवस्था को समझना

Moong Dal की पुष्पन अवस्था का समझना खेती में महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पौधों की सुरक्षित और सही विकास की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यहां मूंगदाल की पुष्पन अवस्था को समझने के लिए विभिन्न चरणों को देखा जाता है:

बुआई से फूल तक

  • बुआई: मूंग की बुआई बीजों के रूप में किया जाता है। इस समय पौधों की कली छोटी सी निकलती हैं।
  • बीजों से पौधे: बुआई के बाद, बीज समय के साथ निकलकर पौधों का निर्माण करते हैं, जिनमें पौधों की शुरुआत होती है।

पौधों का विकास

  • पुष्प निर्माण: जब पौधे पूर्ण रूप से विकसित होते हैं, तो उनमें पुष्प निर्माण होता है। पुष्प बालक के रूप में होते हैं और वृक्ष की सुंदरता में योगदान करते हैं।

पोलिनेशन और बीजनिर्माण

  • पोलिनेशन: पुष्पों में पोलिनेशन के द्वारा बुआई के बीच बीज का प्रसार होता है। यह सुनिश्चित करता है कि बीज सही रूप से बनते हैं।
  • बीजनिर्माण: पोलिनेशन के पश्चात्, बीज निर्माण होते हैं जो उस फूल से निकलकर नए पौधों की शुरुआत करते हैं।

फल और बीज परिणाम

  • फल निर्माण: बीज से निकलकर नए पौधों की शुरुआत होती है जिससे फल निर्माण होता है। फल फूलों की अंतिम अवस्था होती है जो बुआई का पूरा समय चक्र को पूरा करती है।

मूंगदाल की पुष्पन अवस्था में उपर्युक्त चरणों को समझना खेतीकरों को सही समय पर सही देखभाल प्रदान करने में मदद करता है और सुरक्षित और उत्तम उत्पादकता की दिशा में मदद करता है।

2.फली विकास को बढ़ावा देने की तकनीक

उचित बुआई तकनीक

  • बुआई का समय: सही मौसम और जलवायु परिस्थितियों में मूंग दाल की बुआई का समय चयन करें। आमतौर पर, इसे सुबह या शाम के समय करना उचित होता है।

जल संरक्षण तकनीक

  • कप्तानी प्रणाली: Moong फसल को कप्तानी प्रणाली में बोया जा सकता है, जो पानी की बचत करने में मदद करती है और उचित सिंचाई प्रदान करती है।
  • ड्रिप आयरीगेशन: Moong Dal फली के विकास के दौरान, ड्रिप आयरीगेशन सिस्टम का उपयोग करना सुनिश्चित करें जिससे पानी की सही मात्रा में पौधों को मिले।

उपयुक्त पोषण

  • बीजों का चयन: उचित गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करें जो पौधों के सही विकास को सुनिश्चित करें।
  • उर्वरकों का सही उपयोग: फली के विकास के लिए उचित उर्वरकों का इस्तेमाल करें, जिससे पौधों को सही पोषण मिले।

प्रुनिंग और स्टेकिंग

  • प्रुनिंग: अतिरिक्त गाँठों को हटाकर और फली की ऊचाई को नियंत्रित करके करें। यह फली के संरचना को सुधारकर और विकास को सहारा प्रदान करता है।
  • स्टेकिंग: बढ़ते हुए पौधों को सहारा देने के लिए स्टेकिंग का इस्तेमाल करें, खासकर वर्शिक पौधों को समर्थित करने के लिए।

रोग और कीट प्रबंधन

  • आधुनिक तकनीक: आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके रोगों और कीटाणुओं का प्रबंधन करें, ताकि फली का सही विकास हो सके।
  • जैविक नियंत्रण: जैविक नियंत्रण उपायों का सही तरीके से इस्तेमाल करके बिना कीटनाशकों के फली को सुरक्षित रखें।

पूर्वाग्रह

  • उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करें जो फली के सही और सुथरे विकास को सुनिश्चित करते हैं।
  • पूर्वाग्रह उर्वरता: सुखे के दौरान उर्वरता को सुनिश्चित करने के लिए पूर्वाग्रह तकनीकों का अच्छा से इस्तेमाल करें।

Moong Dal फली का सही रूप से विकास करने के लिए उपर्युक्त तकनीकों का सही तरीके से अनुसरण करना महत्वपूर्ण है। इससे उत्तम उत्पादकता, फली की सुरक्षितता, और खेतीकर को अधिक मुनाफा हो सकता है इस तरह आप ये कर सकते हैं ।

मूंग दाल की बुआई का सही समय क्या होता है?

मूंग दाल की बुआई का सबसे उपयुक्त समय गर्मियों की शुरुआती दिनों में होता है, जिससे पौधों को अच्छे से उगने का मौका मिलता है। मार्च से अप्रैल के बीच को सबसे अच्छा बुआई का समय माना जाता है।

मूंग दाल की खेती में कौन-कौन से रोग हो सकते हैं?

मूंग दाल की खेती में कुछ प्रमुख रोग हो सकते हैं जैसे कि दाल के पौधों पर रोग और कीटाणु, जो कि पौधों को प्रभावित कर सकते हैं। इन से बचाव के लिए उपयुक्त उपायों का अनुसरण करना महत्वपूर्ण है।

मूंग दाल को सही ढंग से स्टोर करने के लिए क्या उपाय हैं?

मूंग दाल को सही ढंग से स्टोर करने के लिए उसे शुष्क और ठंडे स्थान पर रखना चाहिए। सीधे सूरज के प्रकार पर धूप में रखने से इसकी गुणवत्ता बनी रहती है और कीटाणुओं का प्रभाव भी कम होता है।

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